जय श्री श्याम।।

श्रीश्याम उत्सवबर्बरीक जिन्हें शीश के दानी के नाम से संसार पूजता है। बर्बरीक के परित्याग (बलिदान) से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण भगवान ने बर्बरीक को अपने नाम से संबोधित किया जिसे आज हम श्री श्याम के नाम से जानते एवं पूजते हैं। फाल्गुन (फरवारी/मार्च) मेला बाबा श्री श्याम जी का मुख्य मेला है। फाल्गुन माह में शुक्ल ग्यारस (एकादशी) को यह मेला का मुख्य दिन होता है। यह मेला अष्टमी से द्वादश तक लगभग 5 दिनों के लिये आयोजित होता है। कार्तिक एकादशी को श्री श्याम जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा यहां पर कृष्ण जन्माष्टमी, झूल-झुलैया एकादशी, होली एवं बसंत पंचमी आदि त्यौहार पूरे धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।यहां पर आये हुये लाखों भक्त इस मेला में शामिल होकर बाबा श्री श्याम की भक्ति अराधना एवं भजन संध्या आदि करते हैं। कुछ भक्तगण तो होली तक यहां पर रूकते हैं और होली के दिन बाबाश्याम के संग होली खेलकर अपने घर प्रस्थान करते हैं।

एकादशी एवं तिथि एकादशी का हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व है। प्रत्येक माह में दो एकादशी होती हैं। जो पूर्णिमा और अमावस्या के दस दिन बाद ग्यारहवीं तिथि ‘एकादशी’ कहलाती है। सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे प्राचीन माना जाता है। प्रत्येक मास में दो एकादशी होती हैं और प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं किन्तु जब अधिकमास या मलमास आता है तो इनकी संख्या बढ़कर 26 एकादशियां हो जाती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक दिन को तिथि कहा जाता है। प्रत्येक मास में 30 तिथियां होती हैं। जो दो भागों में बंटी होती हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष जब चन्द्रमा का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है तो शुक्ल पक्ष कहते हैं। शुक्ल पक्ष समाप्त होने के बाद पूर्णिमा आती है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष जब चन्द्रमा का आकार घटने लगता है तो उसे कृष्ण पक्ष कहते हैं इसके समाप्त होने के बाद अमावस्या होती है। एकादशी भी इन्हीं पक्षों के आधार पर चलती रहती है। अधिकतम श्रद्धालु कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी को बाबा के दर्शन करने आते हैं।

श्याम कुण्ड :- हिन्दू धर्म एवं पुराण के अनुसार श्री श्याम जी का शीश जिस धरा के भाग से अवतरित हुआ उसी भाग को आज (कलयुग में) हम श्याम कुण्ड नाम से संबोधित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक एवं सच्चे मन से इस कुण्ड में डुबकी लगाते हैं उनकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। श्याम कुण्ड को दो भागों में विभक्त किया गया है पुरूषों के लिये अलग तथा महिलाओं के लिये अलग, ताकि किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। इस कुण्ड की विशेषता यह है कि इसकी सीढ़ियां चारों तरफ से बनाई गई हैं ताकि श्रद्धालुओं को ऊपर-नीचे चढ़ने व उतरने में कोई कठिनाई न हो। इस कुण्ड की गहराई लगभग 1 से 1.5 मीटर की है। जिससे भक्तगण आसानी से स्नान व डुबकी लगा सकते हैं।

श्याम बगीची :- श्री श्याम जी मन्दिर के पास श्याम कुण्ड के अलावा भी दर्शनीय स्थल है। जैसे श्याम बगीची, जो एक समृद्ध बाग है। जहां से फूल प्राप्त करके देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है। श्याम बगीची श्री श्याम मन्दिर के बाईं तरफ स्थित है। श्रीश्याम भक्त आलू सिंह जी इसी बगीची के फूलों से श्री श्याम जी का नित्य श्रृंगार करते थे और इसी बगीची में श्रीश्याम भक्त आलू सिंह जी की प्रतिमा भी लगी हुई है। जिस पर श्याम भक्त अपना शीश झुकाने और दर्शन करने आते हैं। श्याम बगीची में कई सारे भक्तों की भी प्रतिमा रखी हुई, जो बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षण हैं।