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।। आप सभी भक्तों को जय श्री श्याम।।
हम वेबसाइट www.Shreeshayamdarshan.com के माध्यम से आप सभी भक्तगणों को मोर्वीनन्दन की हर संभव जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे। हम सच्चे मन से यह मानते हैं कि श्रीश्याम सरकार की सेवा उनके कृपा के बिना नहीं मिल सकती और हम अपने आप को बहुत गर्वित महसूस करते हैं कि इसी बहाने हमें श्रीखाटू नरेश और उनके भक्तों की सेवा करने का शुभ अवसर मिला है। वैसे तो श्रीखाटूश्याम जी का सम्पूर्ण भारत में कई मन्दिर हैं किन्तु इनका मुख्य मन्दिर राजस्थान के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहां पर बाबा खाटूश्याम जी का विश्व विख्यात मन्दिर है। फाल्गुन मेला श्रीखाटूश्याम जी (मोर्वीनन्दन) का मुख्य मेला है। यह मेला फाल्गुन में तिथि के आधार पर 5 दिनों के लिये होली के आसपास मनाया जाता है।
बाबा ने दिया शीश का दान
हरियाणा राज्य के पानीपत जिला में समालखा कस्बे से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव जो अब चुलकाना धाम से प्रसिद्ध है। यही वह पवित्र स्थान हैं जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है। चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिये उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है। युद्ध में पहुंचते ही उनका विशाल रूप देखकर सैनिक डर गये। श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवों को आने के लिये कहा। श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक के पास पंहुचे। बर्बरीक उस समय पूजा में लीन थे। पूजा खत्म होने के बाद बर्बरीक ने ब्राह्मण के रूप में देखकर श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? श्री कृष्ण ने कहा कि जो मांगू क्या आप उसे दे सकते हो। बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास देने के लिये कुछ नहीं है, पर फिर भी आपकी दृष्टि में कुछ है तो मैं देने के लिये तैयार हूं। श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा, लेकिन एक ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता। आप सच बतायें कौन हो? श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुये तो उन्होंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिये किसी महाबली की बली चाहिये। धरती पर तीन वीर महाबली हैं मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो, क्योंकि तुम पांडव कुल से हो। रक्षा के लिये तुम्हारा बलिदान सदैव याद रखा जायेगा। बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को अपने हाथ में ले अमृत से सींचकर अमर करते हुये एक टीले पर रखवा दिया। जिस स्थान पर शीश रखा गया वो पवित्र स्थान चुलकाना धाम है और जिसे आज हम प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मन्दिर चुलकाना धाम के नाम से सम्बोधित करते हैं। बाबा श्याम की संपूर्ण कथा पढ़ने के लिये लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
बाबाश्याम पूजन-विधि
जो भक्तगण सच्चे तन-मन-धन से पूजा करते हैं, भगवान उनकी मनोकामनाऐं जरूर स्वीकार करते हैं। किसी भी देवी-देवताओं की कोई विशेष पूजा-विधि नहीं है, वे तो केवल प्रेम के भूखे हैं। आप अपने आपको पूर्णरूप से समर्पित करके जिस विधि से उनकी पूजा-आराधना करेंगे वे स्वीकार कर लेगें।
श्याम तेरे खेल निराले कोई समझ ना पाये जो समझ जाए तुम्हें वह तेरा हो जाए ।। जय श्री श्याम।।
हे बाबा श्याम इतना सा मेरा एक काम कर दो, खाटू आने वालो भक्तो के हर चेहरो पर मुस्कान भर दो, जब भक्त अपने अपने घर पहुंचे, तो इन्हे भी सुदामा जैसा हैरान कर दो।। मुझे तो बस अपने चरणो की सेवा देकर मेरा सम्मान कर दो।। ।। जय श्री श्याम।।
अश्क आखों में है, उनको ही पी रहा हूँ। जुदाई का जहर पीकर, फिर भी जी रहा हूँ।। ‘‘अन्तरा’’ मेरा दिल तुझपे कुर्बा, ‘मुरलिया वाले रे’-2 मुरलिया वाले रे, ओ सावरियाँ प्यारे अब तो हो जा मेहरबाँ, मुरलिया वाले र